जयपुर9 मिनट पहले
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टोंक जिले की लावा पीएचसी पर तय तापमान पर नहीं रखने से टीके खराब हो चुके हैं। पोलियो की बीओपीवी वैक्सीन पर बेकार होने का निशान तक दिखा। वॉयल पर हल्के बैंगनी रंग के गोले में सफेद रंग का एक आयत बना होता है। तय तापमान पर नहीं रखने पर आयत का रंग हल्का बैंगनी होना शुरू हो जाता है। गाइडलाइन के अनुसार रंग हल्का या गहरा बैंगनी होने पर इसे बच्चों को नहीं लगाया जा सकता। लावा पीएचसी पर रखी सभी 15 वॉयल पर आयत हल्के बैंगनी रंग का हो चुका है। फिर भी इन्हेें बच्चाें को लगाया जा रहा है। आईएलआर के थर्मामीटर का तापमान 0 डिग्री मिला, जबकि रीडिंग 8 आ रही थी, जो बिजली गुल होने पर बढ़ जाती है।
अफसरों को बताया, सुना ही नहीं
भरतपुर जिले की कैथवाड़ा पीएचसी में कोल्ड चेन की इंचार्ज एएनएम माया देवी ने बताया- ‘मैंने जब भी देखा है तापमान 10° ही दिखा है। कई बार बताया। अफसर आए थे उन्हें भी बताया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।’ जिले की रांफ पीएचसी में तापमान 14°, सवाई माधोपुर जिले की खंडीप सीएचसी पर 13° और टोंक जिले की मालपुरा सीएचसी पर 0° मिला। इसी से बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं।
घरेलू फ्रिज में सब्जी की तरह भरी मिली वैक्सीन
करौली जिले की कटकड़ पीएचसी पर टीके आईएलआर की जगह घरेलू फ्रिज में रखे हुए मिले। गाइडलाइन में फ्रिज का प्रयोग वर्जित है। इंचार्ज मनोज मीना ने बताया- पीएचसी फंड से फ्रिज खरीदा था। 2-3 महीने से वैक्सीन वैन नहीं आ रही है इसलिए फ्रिज में रख लेते हैं। सूरोठ सीएचसी इंचार्ज मिथलेश ने बताया- ढिंढोरा पीएचसी पर कोल्ड चेन नहीं है फिर भी एक साथ वैक्सीन ले जाते हैं। पीएचसी के स्टाफ ने कहा- इसे पड़ोस या एएनएम के घर पर फ्रिज में रखते हैं।
2.18 लाख बच्चों को खराब टीके लगने की आशंका
राज्य में इस साल 16.75 लाख बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य है। अब तक के आंकड़ों के अनुसार 87% बच्चों को टीके लगने का अनुमान है। यानी इस बार 14.5 लाख से ज्यादा बच्चों का टीकाकरण होगा। भास्कर की पड़ताल में 35 में से 8 यानी 22.85% जगह कोल्ड चेन टूटी हुई मिली। पूरे प्रदेश में इसे 15% भी मान लें तो 2.18 लाख बच्चों को खराब टीके लगने की आशंका है।
यानी निगरानी में ही दोष है?
“सीएचसी और पीएचसी पर स्थानीय स्टाफ कोल्ड चेन मेंटेन करता है। ब्लॉक से जिले तक के अधिकारी सुनिश्चित करते हैं कि सब प्रोटोकॉल के अनुसार है या नहीं। मैं खुद निगरानी करता हूं। स्टेट कोल्ड चेन ऑफिसर भी इस काम को देखते हैं। फिर भी कहीं गाइडलाइन के अनुसार नहीं है तो उसे ठीक करेंगे।”’
–डॉ. रघुराज सिंह, परियोजना निदेशक, टीकाकरण
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