जयपुरएक घंटा पहलेलेखक: समीर शर्मा और मनीष व्यास
1 रुपए में 10 लीटर दूध…
दूध के इतने कम दाम सुनकर आप भी चौंक गए होंगे। ये दूध महज 10 मिनट में तैयार हो जाता है, लेकिन इसकी हकीकत जान आप सहम जाएंगे।
ये दूध गाय या भैंस का नहीं है। डिटर्जेंट, रिफाइंड ऑयल, कास्टिक सोडा और शैंपू से ये दूध तैयार किया जाता है। राजस्थान के कई जिलों में हजारों परिवार रोज ये जहरीला दूध पी रहे हैं। इस दूध में इतने खतरनाक केमिकल मिलाए जाते हैं जो लीवर, किडनी को डैमेज कर देते हैं। इसे पीने से कैंसर जैसी बीमारी या फिर मौत भी हो सकती है।
इस ‘जहर’ के सौदागरों का गढ़ है अलवर-भरतपुर जिले का मेवात क्षेत्र। गोविंदगढ़ (अलवर) कस्बे के दर्जनों गांवों के सैकड़ों घरों में सिंथेटिक दूध बनाने वाली फैक्ट्रियां चल रही हैं। यह दूध बड़ी-बड़ी डेयरियों से सप्लाई होता हुआ आम घरों और मिठाई की दुकानों तक पहुंच रहा है।
भास्कर रिपोर्टर व्यापारी बनकर नकली दूध के हॉटस्पॉट गोविंदगढ़ कस्बे में पहुंचे और उसके बाद जो देखा…आंखें फटी रह गईं। यहां हमने नकली दूध तैयार के पूरे खेल को कैमरे में कैद किया जो आपको भी चौंका देगा…..
इस बार संडे स्टोरी में उस ‘सफेद जहर’ की पड़ताल जिसे राजस्थान की जनता आंखे मूंदकर पी रही है…..
भास्कर रिपोर्टर गोविंदगढ़ के पास बड़ौदामेव पहुंचे। यहां हमने कुछ लोगों से दूध के बड़े सप्लायर्स के बारे में जानकारी जुटाई। कस्बे के आउटर में हम एक सप्लायर से मिले और खुद को जयपुर का बड़ा दूध व्यापारी बताया। हमने सप्लायर के आगे हर सप्ताह 5-5 हजार लीटर के दो टैंकर दूध जयपुर में डिलीवरी करने की डील की। भरोसा दिलाया कि कुछ दिनों बाद ऑर्डर और बढ़ा देंगे, लेकिन 30 रुपए लीटर में फुल फैट का दूध चाहिए।
हमनें सप्लायर के आगे ये शर्त भी रखी कि ऑर्डर का अप्रूवल लेने के लिए हमें क्वालिटी चेक और मिल्क प्रोसेसिंग का पूरा वीडियो बनाना होगा, जिसे हमें जयपुर में बैठे पार्टनर्स को भेजना पड़ेगा। ये बोलते ही मांग के अनुसार दूध की सप्लाई करने के लिए हां भरने वाले दूधिया पहले झिझका और फिर साफ मना कर दिया। काफी देर बाद सप्लायर अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर सैंपल का वीडियो बनाने के लिए तैयार हुआ।
सप्लायर का ये दावा कितना सही निकला ये हकीकत भी आगे बताएंगे….लेकिन पहले आपको बताते हैं कि आखिर ये दूध तैयार कैसे किया……..
कैमरे के सामने ऐसे बनाया दूध
सैंपल दिखाने के लिए सप्लायर ने हमें थोड़ा रुकने के लिए कहा और अपने बचाव के लिए मुंह पर कपड़ा बांध कर आया। एक पॉलिथीन में लिक्विड डिटर्जेंट की छोटी बोतल, आधा लीटर डेयरी के दूध की थैली और पुड़िया में कुछ केमिकल लेकर आया। उसने अपने हेल्पर से एक परात मंगवाई।
सप्लायर ने शर्ट की आस्तीन ऊपर कर परात में पहले लिक्विड डिटर्जेंट डाला। कुछ देर तक उसे मलता रहा। इसके बाद थोड़ी मात्रा में रिफाइंड ऑयल डाला और फिर से मलना शुरू किया। कुछ देर बाद ही झाग बनने लगा, लेकिन अभी पूरी तरह सफेद नहीं था। उसने हाथ नहीं रोके और बार-बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रिफाइंड ऑयल डालते हुए परात पर हाथ मलता रहा। करीब 7-8 मिनट बाद उसने दूध की थैली से थोड़ा-थोड़ा दूध डालना शुरू किया।
दूध डालने के बाद परात में सफेद झाग बनने शुरू हो गए। रिफाइंड ऑयल के जैसे ही उसने बार-बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दूध डाला। हाथ परात पर मलता रहा और झाग गाढ़ा होता गया। आधे घंटे की पूरी प्रक्रिया के बाद उसने एक प्लास्टिक की बाल्टी मंगवाई और नल से पानी भरा। पहले अपने झाग के हाथ उसी बाल्टी में धोए और इसके बाद मग से परात पर पानी उड़ेलते हुए परात का माल बाल्टी में मिला दिया। उसने कुछ पाउडर (केमिकल) भी मिलाया।
बाल्टी देखकर बिलकुल ऐसा लग रहा था कि भैंस या गाय का दूध थनों से बिलकुल अभी-अभी बाल्टी में भरकर आया है। इसके बाद दूधिये ने बाल्टी से एक गिलास भरा।

……भास्कर टीम ने सप्लायर को वापस लौटने का वादा किया और वहां से निकल आए।
गिलास लेकर डेयरी चेयरमैन के पास पहुंची टीम
भास्कर टीम सिंथेटिक दूध के गिलास को लेकर सीधे अलवर स्थित प्रदेश की सबसे भरोसेमंद सरस डेयरी के कार्यालय पहुंचे। यहां डेयरी चेयरमैन विश्राम गुर्जर को सिंथेटिक दूध का गिलास दिखाते हुए पूरा वाकया सुनाया। उन्होंने दावा किया कि ये दूध सरस डेयरी में नहीं आ सकता, ये लोग प्राइवेट डेयरियों में सप्लाई कर रहे हैं।
चेयरमैन ने माना कि गोविंदगढ़ और आस-पास के क्षेत्रों से 1 लाख लीटर से अधिक सिंथेटिक दूध रोजाना सप्लाई होता है। भास्कर टीम ने सिंथेटिक दूध को सरस डेयरी की ही लैब में टेस्ट करवाने को कहा। डेयरी चेयरमैन के साथ ही हम अंदर बनी लैब में पहुंचे, जहां संकलित होने वाले दूध के सैंपल चेक कराए जाते हैं।

चेयरमैन ने जब रिजल्ट के बारे में पूछा, तो युवती ने कहा- कि ये बढ़िया दूध है। इस स्तर के फैट वाला दूध बाजार में 65 से 70 रुपए प्रति किलो की दर से आसानी से बिक सकता है। सिंथेटिक दूध में इतनी फैट देख डेयरी चेयरमैन भी चौंक गए।
अकेले कार्रवाई नहीं कर सकते- डेयरी चेयरमैन
सैंपल चेक के बाद डेयरी चेयरमैन ने अपनी टीम भेजकर कार्रवाई करने को कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि डेयरी टीम छापे की कार्रवाई करती है, लेकिन फूड डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस की टीम को साथ लेना पड़ता है। कई बार पुलिस टीम नहीं आती, तो कार्रवाई के दौरान हिंसा तक हो जाती है।
बातचीत के दौरान चेयरमैन ने कुछ पुरानी घटनाएं भी बताईं जब डेयरी टीम को पत्थरबाजी और हिंसा झेलनी पड़ी और पुलिस टीम मौके पर पहुंची ही नहीं। डेयरी टीम को कार्रवाई के लिए फूड या स्वास्थ्य विभाग की टीम को साथ लेना पड़ता है, तब जाकर छापे के दौरान कागजी कार्यवाही पूरी होती है।
ब्लैक लिस्टेड डेयरी पर भास्कर टीम ने डलवाई रेड
भास्कर टीम मिलावटी दूध के सप्लाई सिस्टम की पड़ताल के लिए बड़ौदा मेव और शीतल एरिया भी पहुंची। वहां सिंथेटिक तरीके से तैयार दूध निजी डेयरियों पर सप्लाई किया जाता है। इस दौरान भास्कर रिपोर्टर के साथ डेयरी व फूड डिपार्टमेंट की टीम भी साथ रही, लेकिन दो डेयरियों को इस रेड की भनक लग गई थी।
भास्कर टीम की निशानदेही पर हुई इस रेड के बाद मिलावटखोरों में भगदड़ मच गई। कई लोग फैक्ट्री की दीवार फांदकर भाग गए कुछ अपनी बाइक छोड़ गए। फूड सप्लाई टीम ने बाइक पर लदी टंकियों से दूध के सैंपल की जांच की तो पूरा दूध नकली निकला। इसके बाद विभाग ने दूध नष्ट करवाया।
यहां से कुछ ही दूरी पर एक तीसरी डेयरी पर छापा मारा। जहां दूधिये करीब 7-8 बाइक पर थे। दूध के एक बड़े टैंकर में 1500 लीटर के करीब दूध था। लेकिन सैंपल की जांच में वह भी फेल निकला। मतलब, इस डेयरी पर पहुंचने वाला दूध भी मिलावटी था।
हमारी पड़ताल में सामने आया कि इस निजी डेयरी को सरस डेयरी ने ब्लैक लिस्ट कर रखा था। इससे पहले तक इसी डेयरी का सारा दूध सरस डेयरी को ही सप्लाई होता था।
2000 से ज्यादा कलेक्शन सेंटर, दिल्ली-एनसीआर तक नेटवर्क
अलवर जिला मावे और दूध की सप्लाई का हब है। ऐसे में नकली दूध बनाने वाले बड़े सप्लायर्स ने गोविंदगढ़ क्षेत्र से सटे गांवों में बड़े-बड़े कलेक्शन सेंटर बना रखे हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में दूध फैक्ट्री कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इसकी संख्या 2000 से भी ज्यादा है।
यहां बाइकों पर टंकियों या फिर छोटे-बड़े टैंकरों से दूध की सप्लाई कलेक्शन सेंटर्स तक पहुंचती है। जहां दूध को चिल्ड प्लांट में डाल दिया जाता है। फिर इसकी सप्लाई प्रदेश में इनके खरीददारों तक की जाती है।
सिंथेटिक दूध बनाने में सबसे अधिक बदनाम क्षेत्र अलवर जिले का गोविंदगढ़ कस्बा है। भास्कर टीम ने यहां के खैरथल, रामगढ़, बड़ौदामेव, किशनगढ़ बास, इस्माइलपुर, जतौला जैसे कस्बों में जाकर पूरे नेटवर्क की तीन दिन तक पड़ताल की। सामने आया कि मेवात में बनने वाला सिंथेटिक दूध का नेटवर्क दिल्ली तक फैला है।
राजस्थान में मुख्य तौर पर अलवर, भरतपुर, दौसा, अजमेर, जयपुर, जोधपुर तक और दिल्ली व एनसीआर क्षेत्र तक इस दूध की सप्लाई होती है।

आमजन इसलिए नहीं कर पाते सिंथेटिक दूध की पहचान
विशेषज्ञों के अनुसार सिंथेटिक दूध को आमजन एक नजर में नहीं पहचान पाते। इसका बड़ा कारण है कि मिलावटखोर सिंथेटिक दूध को लगभग आधी-आधी मात्रा में असली दूध में मिला देते हैं।
इसके कारण दूध की गंध और स्वाद के जरिए नकली दूध को पकड़ पाना काफी मुश्किल हो जाता है। मिलावट के कारण स्वाद भी असली दूध के जैसा हो जाता है और गंध भी असल दूध जैसी ही हो जाती है।

चतुर मिलावटियों के कारण पड़ेगी लैब की जरूरत
पकड़े जाने के डर से सप्लायर असली दूध में सिंथेटिक दूध की मात्रा आधी के बजाय कम रखता है। ऐसे में घर पर जांच के तरीके फेल हो जाते हैं। कुछ दिनों के अंतराल में दूध सेंपल लैब में ले जाकर जांच करवाएं।


3 साल से कड़ी सजा का कानून अटका
राजस्थान सरकार ने वर्ष 2018 में मिलावट रोकथाम के लिए कानून में संशोधन किया था। विधानसभा में संशोधन बिल पारित भी हो गया, लेकिन अब तक लागू नहीं हो पाया है। यदि अटका हुआ संशोधन बिल कानूनी रूप ले ले, तो मिलावटखोरों के खिलाफ कड़ी सजा के दरवाजे खुल जाएंगे। मिलावटखोरी गैर जमानती अपराध बन जाएगा और दोषियों को 3 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकेगी।
पुलिस को मिलेगा अधिकार : पुलिस को खुद के स्तर पर प्रसंज्ञान लेने का अधिकार
फास्ट ट्रेक कोर्ट : नए कानुन में सभी संभाग मुख्यालयों पर मिलावट के मामलों में सुनवाई के लिए फास्ट ट्रेक अदालतें खोलने का प्रावधान है। इससे सुनवाई जल्दी हो और दोषी को जल्द सजा मिल सके।
मृत्यु साबित करना कठिन : नए कानून में मिलावटखोर को आजीवन कारावास की सजा दिलाने के लिए साबित करना होगा कि मिलावटी पदार्थ से किसी की मृत्यु हुई है।
13 हजार नमूने मिलावटी, 2500 जानलेवा, लेकिन कोई सजा नहीं
वर्ष 2011 में फूड सेफ्टी एक्ट बना, लेकिन मिलावटखोर बेखौफ अपना काम कर रहे हैं। नमूना जांच में मिलावट भी साबित हो जाए, तो जमानती अपराध होने के कारण दोषी छूट जाते हैं और अपना कारोबार फिर शुरू कर देते हैं। एक्ट लागू होने के बाद पिछले दस वर्षों (2011 से 2021) में 13 हजार नमूने मिलावटी मिले हैं, लेकिन कोई सजा तक नहीं पहुंच पाया। इनमें करीब 2500 नमूनों में जानलेवा खतरनाक कैमिकल पाए गए, लेकिन मिलावटखोर जमानत पर छूट गए।


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