सुसाइड नोट की स्याही में छुपा काला सच: खून चूस लेते हैं कोचिंग, मम्मी! आपने चालाकी से साइंस दिला दिया… मैं ओवर कान्फिडेंट हो गया…



कोटाएक घंटा पहलेलेखक: नितिन शर्मा

इन सुसाइड में नोट में सबक हैं… स्टूडेंट्स के लिए, उनके पैरेंट्स के लिए, कोचिंग संचालक और व्यवस्था से जुड़े अफसरों के लिए… ताकि आगे से कोई आत्महत्या करने को मजबूर न हो

भास्कर टीम ने 12 साल के आंकड़े खंगाले। सुसाइड नोट खोजे। मकसद था- आत्महत्या करने वाले स्टूडेंट्स के मन की बात पढ़ना।

हमारी टीम को 7 दिन में 12 साल की 160 आत्महत्याओं में केवल 2 सुसाइड नोट ही मिले। बाकी के या तो दबा दिए गए या नष्ट कर दिए गए। सुसाइड नोट भले पुराने हैं, लेकिन इनका सबक बिल्कुल ताजा है। एक ही दिन में तीन बच्चों के सुसाइड ने एक बार फिर सभी पेरेंट्स को चिंता में डाल दिया। इन्हें पढ़कर वे अपने बच्चों के इमोशंस समझ पाएंगे और उन्हें आत्महत्या करने से बचा सकेंगे।

सुसाइड नोट के इन अक्षरों से जान पाएंगे कि इन बच्चों पर कितना प्रेशर है। घर और फैमिली से दूर रहने पर क्या चैलेंजेस आते हैं। देश की सबसे कठिन परीक्षाओं की तैयारी से गुजरते हुए उनके दिमाग में क्या-क्या ख्याल आते हैं। कोचिंग और दूसरी व्यवस्था से जुड़े अफसरों के लिए इसमें सबक भी हैं।

सबसे पहले 5 पेज के सुसाइड नोट को डीकोड करते हैं…

यह सुसाइड नोट गाजियाबाद की रहने वाली और कोटा में जेईई की कोचिंग कर रहीं 17 साल की कृति त्रिपाठी ने लिखा था। जेईई मेंस-2016 का कटऑफ था 100, कृति ने हासिल किए थे 144 नंबर। कटऑफ से 44 नंबर ज्यादा आने के बावजूद कृति ने 28 अप्रैल 2016 को पांचवीं मंजिल से कूदकर सुसाइड कर लिया। चौंकाने वाली बात ये भी थी कि उसने रिजल्ट से 5 दिन पहले सुसाइड की प्लानिंग की थी।

कृति ने उन पांचों सवालों के जवाब दिए, जो हर स्टूडेंट के सुसाइड के बाद उठते हैं…

क्या कॉम्पिटिशन का प्रेशर हैंडल नहीं कर पाई?

‘मैंने कई लोगों को अवसाद से बाहर निकलने में मदद की, लेकिन खुद अपने लिए ऐसा नहीं कर पाई। मैं खुद से नफरत करने लगी हूं और अपने आप को खत्म कर लेना चाहती हूं। I am Sorry, मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है, खुद से नफरत करना दर्दनाक है।’

क्या वह दिमागी रूप से कमजोर थी?

‘मुझे जानने वाले अधिकांश लोग यह बोलेंगे कि मैं कभी आत्महत्या नहीं करूंगी. मेरे पास आत्महत्या की कोई वजह भी नहीं है, लेकिन वे नहीं जानते कि मेरे भीतर क्या चल रहा है। दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जो मुझे अच्छी तरह समझ पाया। यहां तक कि जो मेरे करीब थे, वे भी मुझे नहीं समझ सके। मुझे खुद के बारे में जानकारी छिपाने की आदत है।’

क्या घरवालों का दबाव था?

मम्मी! मैं साइंस के लिए नहीं बनी थी। तुमने चालाकी से मुझे साइंस पसंद करने वाला बच्चा बनाया। मैंने भी तुम्हें खुश करने के लिए साइंस चुना, लेकिन मेरा मन तो एस्ट्रोफिजिक्स और क्वांटम फिजिक्स में था। मुझे लेखन, इंग्लिश, इतिहास भी पसंद हैं, और वे मुझे बुरे वक्त से निकालने में सक्षम हैं। ऐसा ग्यारहवीं में पढ़ रही छोटी बहन के साथ नहीं करना, वह वही काम करे, जो उसे पसंद हो और जिसमें उसे खुशी मिले।

अब 16 साल के अभिषेक का सुसाइड नोट पढ़िए जो डॉक्टर बनने का सपना लेकर कोटा आया था…

‘ज्यादा आगे बढ़ने के चक्कर में इधर-उधर की चीजों पर फोकस करने लगा। कोचिंग और आपकी बातों को टालने लगा। 11वीं के रेंडमली टॉपिक को कवर करने लगा। इससे मेरा दिमाग दूसरी चीजों में भटकने लगा।’

‘शायद मुझे एक प्रॉपर टाइम टेबल बनाकर पढ़ना चाहिए था। ज्यादा पढ़ने के चक्कर में ऐसी टॉपिक को पढ़ने लगा जो रेलिवेंट नहीं थे। इससे मेरा कॉन्फिडेंट डाउन हो गया। मेरा पढ़ने से मन हटने लगा।’

‘आई एम सॉरी, मैं पकड़ नहीं पाया। कुछ लोग मुझे डिस्ट्रैक्ट करने के लिए बुलाते थे। ताकि मैं क्लास अटेंड नहीं कर पाऊं। मैं पकड़ नहीं पाया। मेरी भी गलती है कि मैं अपने आप में ज्यादा ओवर कॉन्फिडेंट हो गया।’

‘मेरा दिमाग पता नहीं कैसा हो गया है। दिन भर बस रोने का मन करता है। मुझे मेरे सब्जेक्ट अच्छे लगते थे। मेरा इनमें बहुत इंटरेस्ट था। पता नहीं मैं किस तरह की दिमागी बीमारी का शिकार हो गया। जिसने मेरा कंसंट्रेशन खराब कर दिया। मुझे अजीब चीजें करने का बढ़ावा दिया।’

‘मुझे आशा थी आपके सारे टास्क पूरे करूंगा। पता नहीं मैं क्यों हर वक्त हीन भावना से ग्रसित रहने लगा, आत्मविश्वास कम हो गया और दिमाग स्थिर नहीं रहता। मैं छोटी-छोटी चीजों पर बहुत जल्दी पैनिक करने लगा हूं। मेरा दिमाग यही करता रहता है। मैं पढ़ना चाहता हूं, लेकिन पता नहीं क्या हो गया?’

‘आखिर में कहना चाहता हूं कि आप सबसे अच्छे माता -पिता हैं। अगर में फिर से जन्म लेता हूं, मैं आपका ही बेटा बनना चाहता हूं…

(यह सुसाइड नोट 10 सितंबर 2022 का है। )

एक्सपर्ट ने इन सुसाइड नोट के एनालिसिस से बताया क्यों तनाव में आ रहे हैं स्टूडेंट…

होम सिकनेस से बाहर निकलना

एक छात्रा ने हेल्पलाइन को कॉल किया और कहा कि वह परेशान है और सुसाइड करना चाहती है। टीम ने बातों में उलझाकर उससे पता पूछा। उसने बताया कि वह चंबल गार्डन में चंबल नदी के पास खड़ी है। काउंसलर ने कहा- हमने पुलिस और कोचिंग को जानकारी दी। पुलिस पहुंची और बच्ची का रेस्क्यू किया। उसकी काउंसिलिंग हुई तो सामने आया कि वह होम सिकनेस की वजह से परेशान थी। जब पढ़ने के लिए घर से दूर भेजा जाता है तो बच्चों में सेपरेशन एंजायटी होती है। वह दूसरे शहर के इन्वायरमेंट में सेटल होने में समय लेता है।

शहर का टॉपर V/S देशभर के टॉपर्स

जब बच्चे अपने शहर में अपने स्कूल में अच्छे मार्क्स लाते है तो पेरेंट्स की उम्मीदें बढ़ जाती है। उन्हें लगता है कि उनका बच्चा आसानी से परीक्षा पास कर लेगा, लेकिन कोटा में देशभर से बच्चे पढ़ने आ रहे है। ऐसे में यहां पर कई टॉपर्स के बीच रेस होती है। क्रीम बच्चों के साथ फाइट होती है। जब कोचिंग के पहले टेस्ट में ही बच्चे के कम नंबर आते हैं तो वह स्ट्रेस में आ जाता है।

कोचिंग एडमिशन से पहले स्क्रीनिंग नहीं करते

भेड़ चाल में बच्चे को कोटा तो भेज दिया जाता है। यहां कोचिंग संस्थान भी लगातार एडमिशन देती हैं। भले ही बच्चे के बस की बात हो या नहीं। जबकि कोचिंग में जब बच्चा एडमिशन लेने आए तो उसका पहले मेंटल टेस्ट या स्क्रीनिंग होनी चाहिए। साथ ही एप्टीट्यूड टेस्ट होना चाहिए कि यह बच्चा जिस सब्जेक्ट की पढ़ाई करने के लिए आया है क्या वह कर भी पाएगा।

(एक्सपट्‌र्स : एमएल अग्रवाल, कोचिंग स्टूडेंट्स के लिए होप हेल्पलाइन चलाते हैं, डॉ. जूज़र अली, मनोचिकित्सक)

कम नंबर सुसाइड की इकलौती वजह नहीं

80% मार्क्स, खा लिया जहर

17 साल का प्रणव वर्मा MP से कोटा आकर नीट की तैयारी कर रहा था। पढ़ाई में होशियार था। 10वीं में 80 प्रतिशत मार्क्स आए थे। प्रणव ने अपने लैंडमार्क स्थित हॉस्टल में जहर खाकर जान दे दी।

90% आए थे तो उम्मीद थी, नीट क्लियर करेगा

उत्तराखंड के रहने वाले सिद्धार्थ के 10वीं में 90% नंबर आए तो घरवालों ने उसे कोटा भेज दिया। उम्मीद थी कि बेटा 12वीं के साथ ही नीट क्लीयर कर लेगा। इन्द्र विहार स्थित अपने पीजी में उसने भी फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।

इन स्टूडेंट्स के मां-बाप का दर्द

‘मेरा बेटा तो चला गया’

मेरा बच्चा आईआईटी करने के बाद सिविल सेवा में जाने की बात कहता था। पढ़ाई में हमेशा अच्छे नंबर लाता। उसे कोई परेशानी न हो इसलिए मैंने एक साथ कोचिंग की फीस जमा करवा दी थी। यहां कोचिंग- पीजी के भरोसे छोड़ कर गया था। क्या हुआ, मेरा तो बेटा चला गया। बात करता तो कहता था सब ठीक है। पढ़ाई को लेकर एक बार कहा था कि नई बिल्डिंग में प्रोजेक्टर नहीं है। अब क्या कहूं और किससे कहूं।

– मदन सिंह, सिद्धार्थ के पिता

5 साल में 13 हजार स्टूडेंट्स ने लिखा अपना दर्द

कोचिंग सिटी कोटा में बच्चों के सुसाइड के बढ़ते मामलों की पड़ताल के लिए भास्कर ने काउंसलिंग के लिए खोली गई संस्था HOPE के एक्सपर्ट तीन डॉक्टरों के पैनल से चर्चा की। इनके पास पिछले 5 साल में जो 13000 शिकायतें आई, उस आधार पर यह जाना कि आखिर कोचिंग स्टूडेंट के मौत को गले लगाने का ये सिलसिला थम क्यों नहीं रहा?

कोटा में 2 लाख बच्चे, 4 हजार से ज्यादा होस्टल

कोटा में दो लाख से ज्यादा कोचिंग स्टूडेंट हैं। यह विभिन्न कोचिंग में पढ़ाई कर रहे हैं। कोटा में 1 दर्जन से ज्यादा कोचिंग संस्थान है, जिनमें से 5-6 बड़े हैं। 4 हजार से ज्यादा हॉस्टल है। इतने ही पीजी है। करीब हजार होस्टल निर्माण की प्रक्रिया में हैं। मेस, रेस्टोरेंट, दुकानें, कई व्यापार कोटा में चल रहे हैं। यानी कोटा की आर्थिक व्यवस्था की सबसे बड़ी धुरी ये कोचिंग स्टूडेंट्स हैं।

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आतंकवादियों की तरह गैंगस्टर चला रहे स्लीपर सेल:पहली बार बेगुनाह की मौत ने चौंकाया, नया एक्ट लाने की तैयारी में सरकार

दरअसल, राजस्थान में अब गैंगस्टर आतंकवादियों के मॉड्यूल पर काम कर रहे हैं। इनके निशाने पर दूसरे गैंगस्टर ही नहीं, आम लोग भी हैं। सीकर में गैंगस्टर राजू ठेहट की हत्या करने आए 5 बदमाशों ने भी इसी मॉड्यूल पर काम किया। किसी टेररिस्ट आर्गेनाइजेशन की तरह शूटर को ट्रेनिंग दी गई। (पूरी खबर पढ़ें)

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