जयपुर29 मिनट पहलेलेखक: गोवर्धन चौधरी
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी, राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
पिछले दिनों एक जोरदार घटना हुई, जिसका जिक्र सत्ता के गलियारों में खूब नमक मिर्च लगाकर किया जा रहा है। मामला तबादलों से जुड़ा हुआ था, अब तबादलों में गड़बड़ी न हो ऐसा नामुमकिन सा है।
एक विभाग में मंत्री के नजदीकी पर ही तबादलों में खेल करने के आरोप थे। शिकायत साथी मंत्री ने ही की थी तो दम था। अब जिस विभाग के मंत्री के नजदीकियों पर आरोप थे, वे मानने को तैयार नहीं थे। जिस मंत्री ने शिकायत की वे अनदेखी से तमतमा गए, और एक दिन तबादलों वाले मंत्री के बंगले पर ही पहुंच गए। आम तौर पर शांत रहने वाले मंत्री के तेवर काफी तल्ख थे। जमकर खरी-खोटी सुनाई।
तबादलों में खेल के सबूत दिखाए, कॉल रिकॉर्डिंग भी सुनाई। साथी मंत्री के तेवर और तैयारी देख सौम्य छवि वाले मंत्रीजी के पास नजदीकी की गलती मानने के अलावा चारा नहीं था। खबर है कि इस घटना के बाद भूल चूक लेनी देनी वाली कहावत का प्रैक्टिकल किया गया। इस घटना के बाद जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं, खैर ‘दामपंथ’ के साथ बुराई और अपयश तो आता ही है, लेकिन इससे फर्क किसको पड़ रहा है।
पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास भी मत करो
सत्ता की रीत ही अनूठी होती है, कब कौनसा दांवपेच किस पर भारी पड़ जाए कहा नहीं जा सकता। तेजतर्रार मंत्रीजी के साथ पिछले पखवाड़े भर से सियासी तौर पर सब उलटा पुलटा हो रहा है। जो दांव खेल रहे हैं, सब उलटा ही पड़ रहा है। पहले आक्रामक मंत्री ने साथी पर हमला बोला, लेकिन यू टर्न लेना पड़ा। फिर दूसरे मुद्दे पर आक्रामकता दिखाई लेकिन इस बार भी बैक होना पड़ा। मंत्री जरा भावुक और आक्रमक मिजाज के हैं। सत्ता की राजनीति में इन दो कमजोरियों वाले नेता का इस्तेमाल करना आसान होता है।
अंदरखाने चर्चा है कि सत्ता के टॉप वाले कुछ रणनीतिकारों ने मंत्रीजी की आक्रामकता का इस्तेमाल सियासी शतरंज की चालों के लिए कर लिया। सियासी टेस्ट फायर करने वालों ने अपना काम कर लिया, अब परिणाम आक्रमक मंत्री को भुगतने हैं। मौजूदा दौर की सत्ता के बारे में जानकारों का निचोड़ है कि यहां पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास मत करो वाला फार्मूला चलता है। यही फाॅर्मूला मंत्रीजी के साथ आजमा लिया गया है।
राजनीतिक की समझ रखने वाले समझ गए हैं, मंत्री के भी बात समझ आ चुकी है लेकिन तीर कमान से निकल चुका। वैसे आक्रामक अंदाज वाले नेता और फास्ट बॉलर दोनों में एक समानता है, जब तक हालात अनुकूल हो तब तक खूब छाए रहते हैं, लेकिन जब छक्के पड़ने शुरू होते हैं तो हालत पतली भी उतनी ही तेजी से होती है।
प्रियंका गांधी को राजस्थान से चुनाव लड़वाने की पैरवी में जुटा एक खेमा
विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी पार्टी के कई नेताओं ने लोकसभा चुनाव पर सोचना शुरू कर दिया है। इस पार्टी के नेताओं का एक खेमा अभी से गांधी परिवार के मेंबर को टोंक सवाईमाधोपुर से चुनाव लड़ने के लिए पैरवी कर रहा है। पार्टी की बैठकों में इसकी चर्चाएं तक कर चुके हैं। एक खेमे के एक्टिव नेताजी कई स्तर पर चर्चाएं कर चुके हैं। प्रियंका गांधी को टोंक-सवाईमाधोपुर से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव देने के पीछे कई सियासी कारण हैं। एक खेमा चाहता है कि प्रियंका गांधी का राजस्थान में दखल बढ़ाने के लिए उनका राजस्थान से चुनाव लड़ना जरूरी है।
इस खेमे के नेताओं ने इस सीट के समीकरण भी समझाए हैं। हालांकि, पिछले दो चुनाव से मामला जीरो है लेकिन इस बार नेताओं को उम्मीद है। फिलहाल प्रियंका गांधी की तरफ से कोई सिग्नल नहीं मिला है, लेकिन एक खेमा अपनी मुहिम जारी रखे हुए हैंं। अब सियासत में बिना स्वार्थ कुछ नहीं होता,प्रियंका की राजस्थान में एंट्री से कइयों के स्वार्थ जुड़े हुए हैं। आने वाले वक्त में यह मांग और मुखर होगी, क्योंकि मामला ही कुछ ऐसा है।
बाबा को बड़ी जिम्मेदारी का इशारा!

विपक्षी पार्टी के भीतर चुनावी साल से पहले काफी कुछ चल रहा है। सियासी समीकरण साधने के लिए केंद्र के स्तर पर भी बड़ी एक्सरसाइज हो रही है। चुनावी साल में सियासी समीकरण पक्ष में करने के लिए अभी काफी कुछ होना बाकी है। बताया जा रहा है कि आगे केंद्रीय मंत्रिमंडल में विस्तार में राजस्थान के नेताओं को भी जगह मिलेगी। एक नाम बाबा के नाम से मशहूर नेताजी का भी है। बाबा की दिल्ली में हुई हालिया बड़ी मुलाकातों के बाद उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलने की चर्चाएं जोर शोर से चल रही हैं।
देश के मुखिया भी बाबा के राजस्थान में किए गए काम की तारीफ कर चुके हैं। इस बीच उनके सियासी अशुभचिंतक भी एक्टिव हो रहे हैं, लेकिन राजनीति में मैसेज और फायदा पहले देखा जाता है। बस यही बात बाबा के पक्ष में जा सकती है। केंद्र के बारे में कोई पूर्वानुमान लगाना भी उतना आसान नहीं है, लेकिन बाबा के समर्थक लॉबिंग में जुटे हैं।
सियासी उलटबासी से माहौल गर्माया
कबीर के भजनों में रुचि रखने वाले उनकी उलटबासी को जानते हैं, लेकिन कबीर की उलटबासी अगर सियासत में इस्तेमाल होने लग जाए तो बेड़ा गर्क होते देर नहीं लगती। चुनाव में साल भर से कम बचा है लेकिन सत्ताधारी पार्टी में एक के बाद एक सियासी उलटबासी से माहौल गर्माया हुआ है। हाल ही सबसे बड़ी उलटबासी ओबीसी रिजर्वेशन से जुड़े विवाद में देखी गई। यह विवाद सत्ताधारी पार्टी के वोटबैंक को नुकसान पहुंचाने वाला माना जा रहा है।
पिछले दिनों प्रदेश के मुखिया के हिमाचल प्रदेश दौरे के वक्त प्रदेश के पूर्व मंत्री ने उन्हें इस विवाद को सुलझाने का आग्रह किया। बताया जाता है कि प्रदेश के मुखिया ने ओबीसी विवाद को सुलझाने के लिए कैबिनेट में मामला रखवाने का आश्वासन दिया था, नेताजी ने इस आश्वासन के बाद सार्वजनिक घोषणा कर दी।
कैबिनेट की बैठक हुई तो एजेंडा ही डेफर हो गया, एक मंत्री का सुझाव बनाम विरोध चर्चा का मुद्दा बन गया। अंदर जब विरोध हुआ तो मामला आगे के लिए टाल दिया गया। इस पूरे मामले में प्रभावित वर्ग बड़ा वोट बैंक है, एक नेताजी इसमें हाथ जला ही चुके हैं। चुनावी साल से पहले इस मुद्दे पर की गई उलटबासी से हर कोई हैरान है।
सलाहकार के काबू नहीं आए शेखावाटी के मंत्री

शेखावाटी वाले मंत्री ने जब से सरकार और प्रदेश के मुखिया से अलग राह पकड़ी है, तब से उसका असर साफ दिख रहा है। मंत्री के तल्ख तेवर और बयान बुलेट की स्पीड से चल रहे हैं। सरकार का डेमेज कंट्रोल संभालने वाली टीम के एक सलाहकार की मंत्रीजी से पुरानी दोस्ती है। सलाहकार मिलने आते रहते हैं, मंत्री दोस्ती का व्यक्तिगत मामलों में भले लिहाज कर दें लेकिन फिलहाल सियासी मामले में दोस्ती निभाने के मूड में नहीं हैं।
मंत्री से दोस्ती भले हो, लेकिन सलाहकार इसका इस्तेमाल सियासी मकसद से कर रहे हैं, इसका संकेत एक नेताजी ने दिया। मंत्री से मुलाकात करने वालों की पूरी डिटेल सलाहकार ने एक नेताजी को दे दी। बड़े नेताजी ने किसी के साथ इसका जिक्र कर दिया तो बात कई जगह पहुंच गई। वैसे सार यही है कि राजनीति में जो होता है वह दिखता नहीं और जो दिखता है वह होता नहीं।
इलेस्ट्रेशन : संजय डिमरी
वॉइस ओवर: प्रोड्यूसर राहुल बंसल
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