..तो 26 सितंबर को हो जाती नए CM की शपथ: प्रियंका के नजदीकी नेता से मुखिया का मंथन; पत्नी से परेशान एक IAS अफसर



जयपुरएक घंटा पहलेलेखक: गोवर्धन चौधरी

  • हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी और राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से

सत्ताधारी पार्टी के भीतर नेताओं के रिश्ते और उनके सियासी समीकरण प्याज की परतों की तरह हैं, जिन्हें समझना आसान नहीं है। प्रदेश के मुखिया ने पिछले दिनों बोर्ड, निगमों के अध्यक्षों को बुलाकर सियासी मंथन किया। इस सियासी चर्चा का केंद्र बिंदु सरकार और पार्टी को जनता के बीच मजबूत बनाने पर ही रहा।

मंथन के बाद बाकी नेता तो रात को चले गए, लेकिन मुखिया ने खेती किसानी से जुड़े कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष को रोक लिया। अकेले में काफी देर तक चर्चा की। दोनों के बीच क्या चर्चा हुई, इसका खुलासा नहीं हुआ, लेकिन जिस अध्यक्ष के साथ मुखिया ने अकेले में चर्चा की वे प्रियंका गांधी के नजदीकी हैं। अब अकेले में चर्चा का मतलब सब समझ ही गए होंगे।

..तो 26 सितंबर को हो जाती नए CM की शपथ

पिछले महीने के आखिर में हुए सियासी बवाल की रोज नई थ्योरी सामने आ रही है। हर नेता का अपना अपना आकलन है। दिल्ली के सियासी गलियारों से लेकर जयपुर तक अब आगे क्या होगा, इसी पर नजरे टिकी हैं।

सियासत में क्या कब हो जाए कोई नहीं कह सकता, इसीलिए सयाने लोग वेट एंड वॉच की सलाह दे रहे हैं। दिल्ली के एक बड़े नेता ने प्रदेश के एक नेता के सामने दावा किया कि सियासी बवाल नहीं होता तो 26 सितंबर को नए सीएम की शपथ हो जाती। सियासत में एक बार मौका चूकने के बाद कुछ इंतजार तो करना होता है इसलिए अब हाईकमान के अगले कदम का इंतजार है।

हर नेता से पूछ रहे सरकार-रिपीट का पंचशील फार्मूला

प्रदेश के मुखिया से लेकर हर मंत्री-विधायक की जुबान पर इन दिनों सरकार रिपीट करने की बात जरूर सुन लेंगे। भाषण से लेकर व्यक्तिगत बातचीत में भी रिपीट की बात कहना नहीं भूलते। इन दिनों सत्ता बड़े घर से लेकर बड़े ऑफिस तक यह शब्द ज्यादा ही सुनाई दे रहा है।

प्रदेश के मुखिया उनसे मिलने वाले नेता से सरकार रिपीट करने के 5 पॉइंट जरूरत पूछते हैं। कुछ नेताओं ने हाथों हाथ तो कुछ ने डिटेल रिपोर्ट तक भेजी है। यह अलग बात है कि जिन्होंने सरकार रिपीट करने के फाॅर्मूले बताए हैं उन्हें खुद के रिपीट होने के बारे में जरूर संशय है।

सरकार रिपीट करने के पंचशील फार्मूले की जितनी गूंज सत्ता केंद्र के आसपास है उतनी ग्रासरूट पर नहीं है, क्योंकि ढाई साल से जिला-ब्लॉकों में संगठन तो बना ही नहीं है।

भरी बैठक आईएएस को क्यों पड़ी डांट?

सरकार की रिव्यू बैठकों से ग्राउंड पर कितना असर होता है इसकी सही पिक्चर आने में तो वक्त लगता है, लेकिन कई अफसरों की वास्तविकता सामने आ जाती है। पिछले दिनों एक रिव्यू बैठक में मेडिकल से जुडे इश्यू को लेकर एक आईएएस को प्रदेश के मुखिया ने अच्छी खासी डांट लगा दी।

साथ में यह भी नसीहत दे दी कि कुछ काम धाम भी कर लिया करो, गायब ही रहते हो। बड़े अफसर के लिए रिव्यू बैठक में सरकार के मुखिया से इतनी डांट खूब होती है…नीचे तक मैसेज चला गया। ये अफसर सत्ता केंद्र के बड़े अफसर से भी डांट खा चुके हैं। अब या तो कामकाज में सुधार हो जाएगा, अन्यथा इशारा तो हो ही चुका है।

अफसर की कलाकारी की ठेकेदार पर मार, 65 लाख के बिल पर रेड सिग्नल

सरकार के ऑडिटिंग सिस्टम के बारे में पुरानी कहावत है कि निकल जाए तो हाथी को भी कोई नहीं पूछता और अटकना हो तो सुई भी अटक जाए। ऐसा ही कला से जुड़े एक सरकारी संस्थान में हुआ। कई साल पहले वहां कला प्रेमी आईएएस अफसर के रहते 65 लाख की खरीद हुई।

पेंटिंग से जुड़ी इस खरीद का बिल पास नहीं हुआ और कुछ साल पहले अफसर भी रिटायर हो गए। फाइनेंस ने इस बिल को पास करने से मना कर दिया। सप्लायर फाइनेंस डिपार्टमेंट के हेड तक दुखड़ा रो आया लेकिन पैसा देने से साफ इनकार कर दिया है।

अब सप्लायर के पास दुखड़ा रोने के अलावा कुछ रह नहीं गया है। इसकी सीख यही है कि बिना नियम कायदे सरकार के महकमों में कुछ दे दिया तो लेने के देने पड़ने वाली कहावत सच होना तय है।

पत्नी की सियासी चाहत से परेशान आईएएस

एक सौम्य और साफ छवि वाले आईएएस अफसर इन दिनों परेशान हैं। परेशानी का कारण भी घर में ही है। दरअसल, सौम्य छवि वाले आईएएस की पत्नी की भारी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। आईएसस की पत्नी ने कुछ माह पहले विपक्षी पार्टी जॉइन कर ली।

अब टिकट के लिए अभी से लॉबिंग करने की रणनीति में भी जुट गई हैं। आईएएस की परेशानी यह है कि पत्नी उन्हें उनके पुराने संपर्कों का इस्तेमाल अपनी सियासी पारी को ऊंचाई देने और टिकट लेने में करना चाहती है।

आईएएस इस मिजाज के हैं नहीं, लेकिन पत्नी की जिद के आगे कई बार झुकना ही पड़ता है। ये आईएएस पिछले दिनों इसी दबाव का शिकार होकर पत्नी के साथ प्रदेश के दिग्गज नेता से मिलने पहुंचे। उनकी पत्नी ने टिकट के लिए पूरा सियासी व्याख्यान ही सुना दिया। अब सियासत और ब्यूरोक्रेसी के कायदे अलग-अलग हैं, लेकिन आईएएस की पत्नी को कौन समझाए?

इलेस्ट्रेशन : संजय डिमरी

वॉइस ओवर: प्रोड्यूसर राहुल बंसल

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