जैसलमेर16 मिनट पहले
जैसलमेर। कलेक्टर टीना डाबी के हाथो मिली भारत की नागरिकता।
पाकिस्तान के कोजराज सिंह सोढ़ा का इन दिनों खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। 10 साल पहले पाकिस्तान से भारत आए कोजराज सिंह अब पाकिस्तानी नहीं भारतीय कहलाए जाएंगे। कोजराज सिंह को जैसलमेर कलेक्टर टीना डाबी ने भारतीय नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया। भारतीय नागरिकता मिलते ही कोजराज सिंह फूले नहीं समा रहे हैं। उनका कहना है कि वे पाकिस्तान से भारत आए और यहीं के होकर रह गए। 10 साल लोगों की नजरों की तिरछी नजरों का सामने करने के बाद आखिरकार उन्हें भी भारतीय नागरिक कहलाने का गौरव मिल ही गया।
भारत की नागरिकता मिलने के बाद मुस्कराते कोजराज सिंह सोढ़ा
अमरकोट में सोढ़ा परिवार परेशान
पाकिस्तान के अमरकोट के निवासी कोजराज सिंह बताते हैं कि हालांकि पाकिस्तान में उन्हें ऐसी कोई परेशानी नहीं थी कि उनको सब कुछ छोडछाड़ के आना पड़ा। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में सोढ़ा अल्पसंख्यक है और सोढ़ा-सोढ़ा आपस में शादी नहीं कर सकते। इस परेशानी को देखते हुए कई लोग पाकिस्तान से भारत आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे एक संपन्न परिवार से हैं और इनके परिवार की विरासत पाकिस्तान में भी वैभवशाली है। सोढ़ा के पिता मेहताब सिंह पाकिस्तान में नौकरी कर रहे हैं और माता समेत एक छोटा भाई फिलहाल पाकिस्तान में ही है। बाकी वो और उनके तीन भाई जैसलमेर में आ गए और यहीं शादियां करके बस गए।

अपने भाई के साथ जिला कलेक्टर टीना डाबी के हाथों भारत की नागरिकता का प्रमाण पत्र लेते कोजराज सिंह
नागरिकता के लिए किया 10 साल इंतजार
पाकिस्तान से साल 2012 में कोजराज सिंह सोढा जैसलमेर आए। साल 2016 में उन्होंने उदयपुर शादी की। कोजराज सिंह को नागरिकता के लिए करीब 10 साल का इंतजार करना पड़ा। आखिरकार कलेक्टर टीना डाबी के हाथों उन्हें भारत की नागरिकता मिलते ही वो फूले नहीं समा रहे हैं। उनका एक भाई और माता-पिता अभी भी पाकिस्तान में है और वे चाहते हैं कि वे भी जल्द ही हिंदुस्तान की धरती पर आ जाए।
पाक विस्थापितों को होती है परेशानी
कोजराज सिंह बताते हैं कि पाकिस्तान से परेशान होकर भारत आए कई लोग नागरिकता नहीं मिलने तक बहुत परेशान होते हैं। उन्हें मूलभूत सुविधाओं से महरूम रहना पड़ता है। बैंक अकाउंट से लेकर बच्चों के स्कूल एडमिशन तक में भी दिक्कत आती है। सोढ़ा बताते है कि यहां के लोगों द्वारा उन्हें खूब प्यार व स्नेह मिल रहा है। पाक विस्थापितों के लिए पर्टिकुलर शरणार्थी शब्द का प्रयोग जब सुनता था तो मन बहुत दुखी होता था। क्योंकि हमारा पुश्तैनी गांव म्याजलार और ननिहाल कोटड़ी है जो वर्तमान जैसलमेर जिले में ही है। 1947 में जब विभाजन हुआ तो लोगों ने यह नहीं सोचा था कि यह सरहद की लकीरें लोगो के दिलों को भी हमेशा के लिए दो भागों में बाट देगी। विभाजन के समय मेरे पूर्वज जैसलमेर से पाकिस्तान सीमा में चले गए लेकिन हिंदुस्तान सदा दिलों में धड़कता था। लेकिन शरणार्थी शब्द पाक विस्थापित के लिए सुनते हैं तो मन बहुत दुखी होता है क्योंकि इन पाक विस्थापित के पूर्वज भी हिंदुस्तानी थे। लेकिन आज जब मुझे भारतीय होने का ये प्रमाण पत्र मिला है तो इस खुशी को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। उन्होंने सरकार से मांग की है की वे पाक विस्थापित की सार संभाल लें और उन्हें सभी सुविधाओं के साथ भारत में रहने की आजादी दे।
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